छलिया यादे
छलिया यादे
जाते-जाते साल तुम
कुछ लम्हे सुखद भी
सौगात में देकर मुझको
मुँह मोड़ चले गये मेरे जीवन से
आंखों को आज भी प्रतीक्षा
टूटे ख्वाबों के जुड़ जाने की
यादें उसके प्रीत की देकर
मुँह मोड़ के तुम चले गये
बिन तेरे यादें मन भर मुझमे
बरसे अँखियों से नीर नदी
गुजरे यूँ न समय मेरा
तू बादल सा उड़ चला गया
पर ऐसी क्या मजबूरी थी
जो बिन बोले ही दगा दिया
छलिया तो तू नहीं था फिर दर्द
बिछुड़ने का देकर क्यो चला गया।