चांद से पूछा
चांद से पूछा
मैंने चांद से पूछा"क्यों ? अधूरा बना।
क्या ? तुझे भी मिला धोखा सितम गर का।।
तुम भी चमकता था, किसी ओर के लिए।
चमक किसी ओर ने ले लिए, आहट दिया दर्द का।
मैंने पूछा कौन थी वो दिलरुबा।
जो जिंदगी भर के लिए कर दिया जुदा।।
"अरे! ऐसा भी करना था, उस पगली को।
जो बिना बरात सजी हुई, बजा दिया डफली को।।
क्या ? वो बेवफ़ा थी मिल न पाई तुमसे।
क्या ? वो बात करती थी किसी आशिक़ से चली गई झट से।।
कुछ तो सोचना था, दूसरों के बारे में इस क़दर।
जो तुम्हारा दिल तोड कर चली गई मचा कर गदर।।
बहुत तड़पाया होगा दोस्त तुम्हें वादा कर के।
लौट कर भी नहीं आई होगी जहर पिला के।।
ऐसा नहीं करना था, जो अपने को भूल जाएं।
मिटा के लकीर प्यार के, मुड़कर चली जाए।।
तब ! कहा चांद ने, कहानी क्या सुनोगे मेरी।
वो पहले से ही कर लिए थी, दूसरो से यारी।।
नहीं रोक पाएं ऐसी आवारा हवा को उनके बनकर।
क्या ? करूं अब ऊंचाइयां इतनी दूरी पर है, नहीं जा पाऊंगा वहां पर।।