चाक का चक्कर
चाक का चक्कर
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चाक पर चक्कर में पड़ा
मिट्टी का नर्म गोला
सोच रहा है लगातार
कितनी संभावनायें उसमें
ले रही है आकार
चाय की आखिरी घूँट के साथ
पटरियों पर बिखर जाना है
या गोरी की गुदाज बाँहों में अटका
खुशी से छलकते
पनघट से घर को जाना है
किसी पवित्र नदी के जल से भरा
कलश बनकर सर पर धरा
भव्य शोभायात्रा का
मूक दर्शक बन जाना है
या किसी शव की अंतिम परिक्रमा कर
मिट्टी में मिल जाना है।
क्या तुम्हें भी कुछ पता है कुम्हार
मेरे रचयिता
या तुम भी मेरी तरह
किसी चाक के चक्कर में पड़े हो।