इस्त्री की हैसियत
इस्त्री की हैसियत
कल देर रात तक
मैं सो नहीं पाया
जब आँख लगी आखिर
तो मैं अपने कपड़ों पर
इस्त्री करने में लगा था
एक पतलून बहुत जिद्दी थी
इस्त्री कर के रखते ही
खुद ब खुद फिर से खुल
जाती थी
पहले हल्के हाथ से इस्त्री
कर रहा था
फिर भारी हाथ से देर तक
दबाये रख कर इस्त्री
करता रहा
उम्मीद थी इस बार सब कुछ
ठीक होगा लेकिन वो तो
कुछ और ही धागे की बनी थी
इस्त्री हटाते ही देखा
घुटने पे जल गई थी
फिर भी उठ खड़ी हुई
मैंने तंग आ कर पतलून को
अपने अलमारी से निकाल बाहर
करने की ठान ली और
दूसरी एक कमीज़ पर
इस्त्री करने की कोशिश
करने लगा
कमीज़ पर पानी के छींटे मार
प्यार से इस्त्री करना शुरू हुआ
कमीज़ पर इस्त्री पहले भी
मुश्किल काम होता था
पीछे की ओर इस्त्री कर
आगे करने लगो तो
पिछले हिस्से में सिलवट
पड़ने लगती थी
लेकिन इस बार तो
कमीज़ ने पतलून से मानो
कानाफूसी कर ली थी
बिल्कुल उसी के रास्ते पर
चल पड़ी थी
मैं परेशान हो गया
इस तरह अगर मेरे सभी
कपड़े बग़ावत पर आमादा
हो गए तो एक दिन
मेरे पास कोई
कमीज़ या पतलून
बचेगी ही नहीं
मैं तो नंगा हो जाऊँगा
इसी परेशानी ने मेरी नींद
तोड़ दी, मैं पसीने से
तर ब तर था
और अपने कपड़े छू
कर देख रहा था
कहीं मैं नंगा तो नहीं बिल्कुल
अब सोचता हूँ आखिर
कपड़ों की सिलवटों को
इस्त्री की जबरदस्ती कब तक
मिटा पाएगी भला
सिलवटों को मिटाने की ज़िद
कहीं हमें नंगा ना कर दे
