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Shristi thakur

Romance

4  

Shristi thakur

Romance

चाहत

चाहत

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एक शाम तुम्हारे साथ, किताबों के पन्नों के बीच,

मैंने वो गुलाब खोजा जिसे तुम देते - देते अपने कमरे में छोड़ आए,

वो कविता दोहराई जिसे लिखने से पहले ही तुम्हारी आँख लग गई,

आज बस एक नया साल बचा है, उसके बीच ढेर सारा कुछ पुराना है,

घर को पूरा साफ़ किया, एक - एक सिलवट को समेटा, 

और अपने ऊपर कुछ नए रंग को सजते हुए देखने की तमन्ना लिए, शीशे को घंटों देखती रही, 

अपने चमड़े को बहुत खरोंचने पर खून की नदी बही, पुराना खून, छब्बीस सालो से रिसता हुआ,

नयी तो बस वो कविता है जो तुमने लिखी नहीं, वो पगडंडी है जहां चलने की तैयारी कर रही हूँ, 

वो फुर्सत है जिसे हर रोज़ तलाशती हूँ, वो किवाड़ है जिसको खोलने की ख्वाहिश है, 

वो बचपन है, जो इतना याद है कि बहुत पुराना है और इतना भूला हुआ कि अभी नया हो उठता है, 

वो इश्क है जो बहुत दर्द में डूबा हुआ है, बहुत बेबस है, बहुत ही अकेला,

वो जो चाहने से परे कुछ चाहता नहीं, वो जो मैं करना चाहती हूँ, पर कर नहीं पाती, 

वो चाहत है जो हर रोज़ कुछ चाह बैठती है। 


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