बुज़ुर्ग
बुज़ुर्ग
संघर्ष भरे जीवन पथ में चलते-चलते,
हम जब क्लांत हो जाते हैं,
अपने सानिध्य की छाया देते बुज़ुर्ग,
सारी थकान मिटाते हैं।
निराशा भरे उर में बुज़ुर्ग सदा,
आस के दीप जलाते हैं।
उदास मन के मरुस्थल में,
आशा के सुमन खिलाते हैं।
राह में चलते-चलते हम,
कभी भी जब भटक जाते हैं,
तब बुज़ुर्ग बन जाते दीपक,
हमें सही मार्ग दिखलाते हैं।
एक जलप्रपात की तरह बुज़ुर्ग,
मुक्तहस्त से हमपर प्रेम की धारा
सदैव बरसाते हैं।
इसके प्रतिफल में हमसे वे बस हमसे,
थोड़ा प्यार और आदर ही तो चाहते हैं।