नारी
नारी
कली सी कोमल है नारी,
सौम्यता ही उसकी पहचान है।
हृदय में सदा उसके,
प्रेम की सुगंध विधमान है।
ज्वाला है नारी जो सदा,
भीषण ताप सह जाती है।
अपने प्रियजनों को कष्ट में देख,
दावानल बन जाती है।
सरिता है नारी जो सभी को,
सदा शीतलता का सुख देती है।
काँटों दर्द को लेकिन हँसकर,
अपने आँचल में ले लेती है।
विशाल पर्वत है नारी जो,
पवन के दारुण वेग से टकराती है।
जीवन के कष्टों से सदैव ही लेकिन,
परिजनों को बचाती है।
सदा पूज्यनीय है नारी वह
सृष्टि का आधार स्तम्भ है।
त्याग और बलिदान का समाज में,
वह शाश्वत प्रतिबिम्ब है।