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SUMAN KUMARI

Abstract

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SUMAN KUMARI

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बुराई

बुराई

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मन में कुछ चल रहा था

ना जाने कुछ आड़े अड़ा था

मैं दिल की गली से निकल जाता

पर वही वह आगे खड़ा था

 

कुछ कहने लगा था

मैं तेरे अंदर की बुराई

तुझसे चंद सवाल कर रही हूं

जैसी हलाला से परेशान बेगम खड़ी हो

जिसमें लाचारी भरी हो,

 

और मुझसे पूछने लगे हो

तुमने मेरे बारे में,

किस-किस से कहा है

शायद किसी याचिका में सुना है

 

कहते हो बुरा मुझे

फिर भी अपनी

नसीहत के आगे

लाकर खड़ा करते हो,

 

>

मेरा अस्तित्व जब,

बुराई से बना है

बुराई में ही खड़ा है

फिर भी तू मुझे नहीं छोड़ता

मेरे बिना क्या है 

अस्तित्व तेरा?

 

सही में भी यूं मैं बुरी हूं

बुराई में मैं बुरी हूं

फिर भी पूछती हूं तुझसे

जब मैं बुरी हूं तो

आखिर तेरे रास्ते में,

क्यों खड़ी हूं

 

इसलिए कि तूने मुझे संभाला है

सो मैं तेरे रास्ते में

साए की तरह खड़ी हूं

मैं बुराई, बुरी हूं।

          


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