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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

बुरा करो मत

बुरा करो मत

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बुरा देखो मत

बुरा कहो मत

बुरा सुनो मत

बुरा करो मत


मानो ये मत

मिलेगी इज्जत

सब लोग करेंगे,

तुमसे मोहब्ब्त


दीप जलेंगे

फूल खिलेंगे

बोलो सदा सत

बुराई हारेगी


अच्छाई जीतेगी,

सत्कर्म की

डालो लत

यही इबादत है


यही सज़दा है

सच की स्याही से

लिखो सबको ख़त

शरीर भले नश्वर है


कर्म तेरा अमर है

अच्छे कामों से,

बदल डालो वक्त।


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