बरगद
बरगद
याद मुझे है बचपन मेरा
इस जीवन का उजला सवेरा
खेत बाग और मैदानों में
हँसता-खिलता मासूम सा चेहरा
कई थे साथी उस बचपन के
कई मित्र थे सब अल्हड़ से
जीव-प्राणी का भेद नहीं था
तितली, गिलहरी, चिड़िया, कोयल
पेड़-पुष्प सब मित्र सरीखे
एक मित्र था बड़ा अनोखा ----
अरे था नहीं है------
आज भी वो साथ है मेरे
मेरा बूढ़ा बरगद बाबा-----
इतना घना वो इतना बड़ा है
जिसकी छाया वरदान सी लगती
कई पीढ़ियां जिसमें पलती
पिता मेरे ये कहते हैं ----
इसके नीचे मैं भी खेला।