Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

N.Beena Gupta

Inspirational

4  

N.Beena Gupta

Inspirational

स्वयं

स्वयं

2 mins
346


 

मैं खुद से ही मिलने चली 

न राह कोई न गली मिली 

किससे अपना पूछूं पता 

मैं कब कहा खुद को भूली 

फिर भी पग मैंने बढ़ा दिए 

जा पहुँची अपने बचपन मैं 

जो न किया ... वो थोड़ा था।

घूमता लट्टू....उछलती गिल्ली ,

रस्सा, स्टापू,पकड़म - पकड़ाई 

पंजी -दस्सी की लॉटरी ...... में

अंगुल भर खिलौनों की फौज जुटाई।

दस्सी की कुल्फी ,बड़ी गज़ब थी 

पत्ते के दोनों में लबालब चाट 

बस कुछ न पुछो ,

सुनते ही जीभ है ललचाई .......

इमली थोड़ी कम खाई पर 

चटपट चूरन गप्पा गप खाया।

घर की धुरी से ,कितनी दिशाएँ ..... कितने रास्ते 

पैरों से ही नाप लिए ,

घायल चिड़िया ..... या तितली कोई 

हाथों में लेकर सहलाई।


इन अद्भुत सी बातों को 

स्पंदित सी यादों को ...... मन करता है ,

थैले में रख लूँ तह पर तह 

कुछ पल क्या कुछ दिन भी नहीं 

पूरे पड़ते इन्हें मिलने में ..... 

इक-इक तह जब खोलूँ तो ,

बचपन में जी भर रह लूँ तो ,

खुद से शायद मिल पाऊँगी 

मैं जो पीछे छूट गई हूँ 

आधी अधूरी जीते जीते ..... 

खुद को ही जो भूल गई हूँ।

तब शायद स्वयं’ से मिल पाऊँ 

बचपन से मिलकर आगे बढ़ी तो 

गीत मुझे इक याद आया ..... 

‘ दुनिया के रंग कितने अच्छे होते 

बड़े न होते काश सारे बच्चे होते।’

चुलबुल बचपन बीत गया 

खेल गया ...... शैतानी गई 

ऐसे भी क्या बड़े हुए ....... मर्यादा 

हाँ , मर्यादा मात्र कहानी हुई।

कपड़े ऐसे न पहनो ... तुम 

बाते धीरे क्यूँ नहीं करती 

हा हा ही ही क्यूँ करती हो 

ज़ोर ज़ोर से क्यूँ हँसती हो।

खेल...... काम नहीं आएंगे 

काम सीख ले घर का वरना

`नाम हमारा रखवाएगी ‘ 

सुन सुन कर खुद को इतना बदला 

मैं ही मुझ से बिछड़ गई 

न धरती रही न चाँद बनी 

इक इक कर जकड़ी धागों मे

मर्यादा के तागो में ..... 

बंधती गई में बंधती गई 

निर्जीव काठ की पुतली बनी 

खुद की छाया के पीछे-पीछे 

भाग भाग मैं टूट गई 

प्रश्न न इच्छा न कोलाहल 

खुद से ऐसी रूठ गई।

घंटों बैठी रही स्तब्ध मैं ....

 शून्य-भाव के पाश में बंधकर 

जड़ हो जाती ऐसे ही यदि 

ऊं ऊं .... ऊं ऊं सुन कर चौंक न जाती 

लौट न पाती खुद में शायद 

यदि नन्ही सी परी ..... 

माँ माँ कह कर न बुलाती।

मेरी मुझ से मिलने की 

चाह को विराम मिला 

इक मासूम सी सूरत में

मुझ को सारा संसार मिला 

इसने अर्थ दिए जीवन को 

मेरी उदासी छिटक गई 

उसकी हँसी की खनक के पीछे 

इसकी तुतलाती बातों से 

जीवन में उमंग सी लहराई

यही सुखद ..... मिलन मेरा 

आज स्वयं से पूर्ण हुआ।

मैं क्यूँ खुद को ढूंढ रही थी 

 प्रश्न यही बस शेष रहा ..... 

 प्रश्न रहेगा शेष सदा ये....

क्यूंकि नारी ही है ऐसी कृति जो 

सदियों से जीवन जीकर भी

वो खुद को न ढूंढ सकी



Rate this content
Log in

More hindi poem from N.Beena Gupta

Similar hindi poem from Inspirational