बिखरते बिखरते
बिखरते बिखरते
किसे पता
क्या चले अब तुम्हारी
कटी हुई नसों में।
जिसमें नजर आया था
कभी
आफताब हँसता।
जो तुम्हारे संग जिए-मरे
मरे अकेले उमड़ते
ख्याल वे।
रचते अलग ही
गुजरने का
तौर-तरीका,
जैसे पत्ते
बिखरते-बिखरते
मिट जाए।
