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भूकम्प का वह दिन

भूकम्प का वह दिन

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बैठे बैठे पैर में सनसनाहट सी उठी,

रसोईघर के बरतनों में खनखनाहट सी उठी,

गिर पड़ी वह बोतलें एक किनारे जो थीं खड़ी,

मेज़ पर रखी गेंद भी दूर जा गिरी।


कुछ समझ पाती वह, इससे पहले यह धरती फट उठी,

कुछ कर पाती वह इससे पहले दूर जा गिरी।

नष्ट होने में सब कुछ, लगी सिर्फ कुछ मिनटों की देर,

जो थीं कभी इमारतें, अब थीं बस मलबे का ढेर।


इंसानी शरीर खोजने जब सुरक्षा दल आया,

तो एक टूटे दरवाज़े के नीचे था उसको पाया,

कुछ अजीब सा लेकिन उसका अंदाज़ था,

सजदे में झुका हुआ जैसे कोई इंसान था।


जब पलटा उसके शव को तो सब दंग रह गये,

हर देखने वाले के नैन उस समय नम हो गये,

क्योंकि उसके नीचे उसका बच्चा था लेटा,

सीने पर जिसके एक पर्चा था रखा।


लिखा था जिसपर, "बच्चे मेरे, मैं थी तेरी माँ,

बच जाये तो याद रखना तुझको दी मैंने अपनी जाँ।"


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