भ्रूण हत्या (एक अबोध गुहार)
भ्रूण हत्या (एक अबोध गुहार)
मेरी माँ मुझको, तेरा जहाँ चाहिये,
में जहाँ हूँ मुझे तू, वहाँ चाहिये,
सांस मेरी रूके, तो समझना ऐ माँ ,
आसरा तेरे, जैसा कहाँ चाहिये।
जा रही हूँ मैं माँ, तेरे घर द्वार से
कल से लड़के , बनूगी मैं संसार के,
साथ तूने मेरा, ऐसा छोड़ा है माँ,
मुझको नफरत हुई, हर एक व्यवहार से।
।दीदार तेरा, मैं पा न सकी,
भेजे को तेरे, खपा न सकी।
दूरी बढ़ाती रही तुम सदा, माँ
मुझमें तमन्ना,छपा न सकी
अरमान कितने, वो गहरे थे माँ,
तुम और मैं , संग संग ठहरे थे माँ,
बातों की कितनी थी, बारिश हुई
हम ही बस, अन्दर तक बहरे थे.माँ।
इंसान बनकर संभलना था माँ,
रंगत मे तेरी ही, ढ़लना था माँ,
संतान तूने, तो माना नहीं ,
गोदी में तेरी ही, पलना था माँ।
आखिर अलविदा, देती हूँ जा रही,
काफी सबक, लेती हूँ जा रही,
उस खुदा से कहूँगी, बच्ची न बना,
इस संसार मे, खूब रेंती जा रही।
लडकी मिटती रही क्यों यूँ, घरबार में,
नारी शक्ति ही बढ़ती , हर प्रहार में,
तुझको हासिल ही करना था, ऐ मेरी माँ
मै बन ही गयी, तेरे आहार में।