भरने दो !
भरने दो !
चुप चुप
सा रहता है,
जाने कहाँ क्या
देखता रहता है
वो अपने में
कहीं खोया खोया
सा रहता है।
नजूमी नहीं,
न ही कोई
तावीज देने वाली मैं
आँखों में ठहरे
पानी सी
उसकी कहानी
जीने वाली मैं!
सोचती हूँ अब
कह दूं क्या ..?!
कह दूं...
कि कुछ नहीं वहां अब
सिमट रहा है वो
दिलो में दुखता पल भी अब ।
ये जो दामन में
छिपाया हुआ दर्द है
उसे अतीत में
जाने दो,
कुछ वहां भी भरने दो,
कुछ यहां भी भर जाने दो।
आस पास
जीवन के खेल में
खुद को शामिल होने दो
धीमे से अपनो को
फिर से मुस्कराने दो
छोड़ो न!
बीते वक्त को...
उसको अब बस ..जाने दो
इन घावों को ज़रा भर जाने दो।
हां !
समय, समय है
वो बाज़ नहीं आएगा
कभी न कभी कुरेदेगा
घाव वो इसे नहीं सहलायेगा
नादान सा छेड़ जाएगा
मगर तुम तब भी संभलना
की ये बस एक लम्हा है
गुजर जाएगा,
मरहम बस भविष्य है
जो 'गर' सम्भल जायेगा।
मरहम बस भविष्य है
जो 'गर' सम्भल जायेगा।
