भावुक होती सी
भावुक होती सी
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न जानें क्यों..?
बहुत भावुक होती जा रही हूँ
आज मैं रोना चाह रही हूँ खुलकर
लेकिन नही मिला वो कंधा जहाँ रख सकूं
अपने सिर को व हल्का कर सकूं मन को
न जानें क्यों..?
रो सकूं खुलकर ताकि अंतर्मन में बंद
अकेलापन खुल सके व राहत मिल सके
दुख रूपी अंधकार कुछ धूमिल पड़ सके
और महसूस कर सकूं स्वयं में सकारात्मकता
न जानें क्यों..?
बरसात में भी बह नही रही मेरे गहन दर्द की पीड़ा
और भीगने पर भी वही हालत हैं मेरी तो बिन बरसात
बहते आंसुओ के पानी की सीलन सा साथ
नहीं सूखा पा रही हूँ द्रवित नयन खारे पानी से अपने
न जानें क्यों..?