भावों की खुशबू
भावों की खुशबू
सब कुछ योजनानुसार चल रहा
अचानक जो हुआ
उम्मीद से बहुत आगे,
सब कुछ इतना तीव्र था कि
समझना मुश्किल था।
ऐसा भी हो सकता है,
मन हाँ- न के उहा पोह में उलझकर रह गया।
पर सब कुछ सामने था
मेरे साथ हो रहा था
नकार भी कैसे सकता था,
पर सपने जैसा था,
जिसकी खुशी सँभाल पाना कठिन था
मुझ जैसे पथरीले इंसान के लिए
तभी तो आँखों में आँसू तैर गए
बस किसी तरह सँभाल सका खुद को।
मन विह्वल मगर गर्व की अनुभूति करता
उस अनजानी अनदेखी शख़्सियत के साथ
हुआ जब हमारा प्रथम आमना सामना
मन श्रद्धा से भर गया,
उसके कदमों में झुकने को लालायित हो उठा,
बड़ी मुश्किल से खुद को सँभाला
और रख दिया अपना हाथ उसके सिर पर
क्योंकि हिम्मत नहीं हुई
उसके अपनत्व भरे भाव को नकारने की
असम्मानित करने की
क्योंकि मैं ऐसा ही हूँ।
मगर उन चंद पलों ने
वो दे दिया जो उम्मीदों से बहुत ऊपर था
पूरा का पूरा आसमान था,
रिश्तों का अनूठा बंधन जुड़ गया
जिसमें घुली थी माँ, बहन, बेटी के भावों की खुशबू
और मुझे लगने लगा अपना कद
एकदम बौना- बौना
मगर बहुत गर्वोक्ति के साथ।