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बेटी

बेटी

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बेटी पढ़ती तो बढ़े, दो कुल का अभिमान

देश बने उन्नत जहाँ, बाहर हो सम्मान।


बेटी आँगन की कली, खिले पराये धाम

चैन मिले या ना मिले, करती सारे काम।


बेटी बनती है बहू, जब से पिय के गाँव

ताने सुन कर जी रही, नहीं ख़ुशी का ठाँव।


बेटी चौखट लाँघती, निभा मौत से प्रीत

सदा रहे वह लाज में, बड़ी अनोखी रीत।


बेटी फूल गुलाब का, घर,आँगन महकाय

बाबुल का दिल रो पड़े, जब वो घर से जाय।।


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