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mahesh gelda

Abstract

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mahesh gelda

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बेटी से माँ का सफ़र

बेटी से माँ का सफ़र

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बेटी से माँ का सफ़र

बेफिक्री से फिकर का सफ़र

रोने से चुप कराने का सफ़र

उत्सुकत्ता से संयम का सफ़र

पहले जो आँचल में छुप जाया करती थी ।

आज किसी को आँचल में छुपा लेती हैं ।

पहले जो ऊँगली पे गरम लगने से घर को

उठाया करती थी ।

आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया

करती हैं ।

छोटी छोटी बातों पे रो जाया करती

थी

बड़ी बड़ी बातों को मन में रखा करती हैं ।

पहले दोस्तों से लड़ लिया करती थी ।

आज उनसे बात करने को तरस जाती हैं ।

माँ कह कर पूरे घर में उछला करती थी ।

माँ सुन के धीरे से मुस्कुराया करती हैं ।

10 बजे उठने पर भी जल्दी उठ जाना होता

था ।

आज 7 बजे उठने पर भी

लेट हो जाता हैं ।

खुद के शौक पूरे करते करते ही साल गुजर

जाता था ।

आज खुद के लिए एक कपडा लेने में आलस आ

जाता हैं ।

पूरे दिन फ्री होके भी बिजी बताया

करते थे ।

अब पूरे दिन काम करके भी फ्री

कहलाया करते हैं ।

साल की एक एग्जाम के लिए पूरे साल

पढ़ा करते थे।

अब हर दिन बिना तैयारी के एग्जाम

दिया करते हैं ।

ना जाने कब किसी की बेटी

किसी की माँ बन गई ।

कब बेटी से माँ के सफ़र में तब्दील हो गई ....


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