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बेटी हूँ मैं

बेटी हूँ मैं

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क्या हूँ मैं,

कौन हूँ मैं,

यही सवाल करती हूँ मैं,


लड़की हो,

लाचार, मजबूर,

बेचारी हो,

यही जवाब सुनती हूँ मैं।


बड़ी हुई,

जब समाज की

रस्मों को पहचाना,

अपने ही सवाल का जवाब,

तब मैंने खुद में ही पाया,


लाचार नही,

मजबूर नहीं मैं,

एक धधकती चिंगारी हूँ,

छेड़ों मत जल जाओगें,

दुर्गा और काली हूँ मैं,


परिवार का सम्मान,

माँ-बाप का अभिमान हूँ मैं,

औरत के सब रुपों में

सबसे प्यारा रुप हूँ मैं,


जिसकों माँ ने

बड़े प्यार से हैं पाला,

उस माँ की बेटी हूँ मैं,

उस माँ की बेटी हूँ मैं।


सृष्टि की उत्पत्ति का

प्रारंभिक बीज हूँ मैं,

नये-नये रिश्तों को बनाने वाली

रीत हूँ मैं,


रिश्तों को प्यार में

बांधने वाली डोर हूँ मैं,

जिसकों हर मुश्किल में संभाला,

उस पिता की बेटी हूँ मैं,

उस पिता की बेटी हूँ मैं।


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