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Neil Patel

Others

5.0  

Neil Patel

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ख़्याल

ख़्याल

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नज़्म तराशते हुए कल छिल गए कुछ ख़्याल

जेहन की गहराइयों में तब्दील हो गए,

तदबीर तो बहुत की मगर,

वो आड़े तिरछे एहसास ख़लाओं में ग़ुम हो गए।


कहीं तफ्तीश करता रहा मैं

रातभर ख्वाबों की

नदी में कागज़ की कश्ती पर

लफ्ज़ की पतवार थामे दूर कहीं,


वो ख़्याल नज़र आया

किनारे पर पड़ा था

यूँ जैसे लहरों ने लाकर,

अभी फेंका हो,

जगह जगह से कटा हुआ काँपता हुआ,


सहमा हुआ,

इक ख़्याल कलम की चादर ओढ़ाकर

मैंने जला दिया फिर,

नज़्म का अलाव खुद को तलाशते हुए

कल मिल गए कुछ जवाब।


रूह की परछाई में दफ़न थे जो

तहरीर सी लिखी हैं,

दिल पर वो रेशमी सुनहरे ज़ज्बात

मुझमे बस गए हैं।


कहीं दीदार करता रहा

मैं रात भर चाँद की रौशनी में

ख्वाहिशों की ज़मीं पर

अल्फ़ाज़ की डोर थामे दूर कहीं,

वो ख़्याल नज़र आया

ख़ामोशी से लिपटा था,


यूँ जैसे बेचैनियों ने आकर,

अभी सींचा हो

जगह जगह से फटा हुआ ठिठुरता हुआ,

भीगा हुआ,

इक ख़्याल हर्फ़ का लिबास पहनाकर

मैंने जला दिया फिर, नज़्म का अलाव।


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