बेहाल साल की सीख
बेहाल साल की सीख
नए साल दो हज़ार बीस का सबने किया बेसब्री से इंतज़ार..
सबने सोचा अब तरक्की के खुलेंगे नए-नए द्वार..
आगे बढ़ेंगे ज़िन्दगी में, मौज-मस्ती के साथ...
लेकिन... दो हज़ार बीस आया भी तो कैसे, कोरोना के साथ।
तरक्की सब भूल गए और आज़ादी खत्म हो गयी
सब हो गए घर में बंद,
आत्मनिर्भर बनना पढ़ा सबको तुरंत ।
जैसे-जैसे दिन गुजरने लगे...
एक घुटन-सी, सबको लगने लगी।
मानसिक स्वास्थ पर भी असर पढ़ा..
जिसमे रिश्तों का महत्व और बढ़ा ।
दूर रहके भी साथ निभाना था...
एक दूसरे के संग रहना था ।
शारीरिक ६ फुट की दूरी रखनी थी...
पर भावनात्मक और मानसिक रूप से नहीं ।
सबकी भलाई इसी में थी,
सबकी भलाई इसी में थी !!!!
चलो इस शागुतागी का सामना मिलकर करे..
क्यूंकि, भाईचारगी के नाम से ही
ज़िन्दगी चले, ज़िन्दगी चले!!!