बे-सबब होंठ मुस्कुराते हैं
बे-सबब होंठ मुस्कुराते हैं
बे-सबब होंठ मुस्कुराते हैं
जब तिरा नाम गुनगुनाते हैं।
अब उदासी में है परिंदे, क्यूँ ?
लोग पेड़ों से घर बनाते हैं।
तेरे गालों पे बिखरी वो खुशबू
अपने होंठों से हम चुराते हैं।
छोड़ जाते है बेटे वालिद को
बाप तो हौसला बढ़ाते हैं।
तेरी सूरत पे लिक्खा वो नग्मा
तेरी तस्वीर को सुनाते हैं।
अब वो पढ़ती नहीं मिरी गज़लें
फिर भी स्टेटस में हम लगाते हैं।
अब तो होता है अपना यूँ मिलना
अब्र सावन में जैसे आते हैं।
जा चुकी है वो क्लास से मेरी
फिर भी कॉलेज में हम आते हैं।
ख़्वाब आते हैं कुछ महीनों से
मेरे बच्चे मुझे सताते हैं।