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Rupam Kumar

Abstract

5.0  

Rupam Kumar

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तीरगी में भी जगमगाती हूँ

तीरगी में भी जगमगाती हूँ

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तीरगी में भी जगमगाती हूँ

गम-ए-दुनिया में गीत गाती हूँ।


है मेरी ज़िंदगी की इक आदत

खुद की मजबूरियाँ छुपाती हूँ।


तुमने देखा नहीं मुझे छू कर

मैं तो नाज़ुक हूँ टूट जाती हूँ।


एक लड़के की बस मेरी हसरत

एक लड़के से दिल लगाती हूँ।


बंद करके मैं अपने कमरे को

तेरे होने का गम मनाती हूँ।


याद करती हूँ 'मीत' की ग़ज़लें

रात  होते  ही भूल जाती हूँ।


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