बदलाव
बदलाव
अब धरती अपनी सब्र खो चुकी है,
बदलना चाहती है अब अपना स्वभाव ,
अब धीरे धीरे बदल रहा है इंसान भी अपनी बर्ताव।
कुछ बड़े बदलाब के लिए जरुरी है कि,
बदली जाएं आदतें ,विचार और परम्पराएं,
दोहराया जाये फिर से उन तमाम उसूलों को ,
जो भुला दिए गए समय क साथ साथ आगे बढ़ते बढ़ते।
जरुरी है अब लौटना अपने अपने घर को,
ठीक उन परिंदों के तरह जो लौट आते हैं अपने घोसलों में शाम होते ही,
उससे भी ज्यादा जरुरी है जुड़ना अपनी संस्कृति से,
एक बार फिर गले लगाना है अपनी सभ्यता को,
फिर से सुनना है मिटटी की पुकार को।