स्त्री
स्त्री
सृष्टि के आरम्भ से
अंत तक, हर कहानी में
ज़िक्र तेरा, फ़िक्र तेरा,
है संवारती तू ही,
है सम्भालती तू ही,
तुझमे है प्रलय,
और प्रेम भी..
काम की प्रखर अनल में,
क्रोध की धधकती लौ में,
लोभ की प्रचण्ड सीखा में
हर बार हुआ है समर्पण तेरा...
तू प्यार है, प्रीत है,
हर वो रीत और रिवाज है,
तू आस है विश्वास है,
तू ही जीवन का आधार...
है मुमकीन कहाँ बिन तेरे,
गुजारा एक लम्हा भी,
तू आधार है,
तू ही सृष्टि का सार है..!.