बढे़ चलो
बढे़ चलो
पाँव बस रूके नहीं, चले चलो बढ़े चलो।
मुश्किलों से तुम लड़ो, डरो नहीं, झुको नहीं डटे रहो ।
प्राण वायु हौसला हे, हौसले से भरे रहो ।
दीप तुम जलाओ अन्धकार में, जगमगा उठे धरा ज्योतिपुंज से ।
गगन में शंखनाद हो, विजयी तुम बनो ।
पाँव बस रूके नहीं, चले चलो बढ़े चलो।
साक्ष्य समय दे रहा, सामर्थ्य ही टिका रहा ।
तुम धीरवान संयंमी बनो, लक्ष्य साधना करो,
प्रसन्न चित्त रहो कर्म किया करो ।
आस्थावान, अनुशासित जीव तुम बनो ।
पाँव बस रूके नहीं, चले चलो बढ़े चलो।
क्या मिला तुम्हें ये नहीं गिनो अभी,
तुमने क्या दिया ये कहो अभी ।
देवता भी मानव रुप धर प्रकट हुये,
तुम्हे जन्म मानव का मिला ।
देवत्व प्राप्त तुम करो ।
पाँव बस रूके नहीं, चले चलो बढ़े चलो ।
नाश हो अधर्म का ,देवदूत तुम बनो ।
युग नया तुम्ही से आयेगा,
रूढी़यो को ज्ञान तोड़ पायेगा ।
तुम विद्यार्थी बनो ।
नित नये प्रयोग से हो रूबरू, नवल कोपलो से पल्लवित हो ।
सुगंन्धी पुष्प बन कर खिलो, गुणी बनो गुणी बनो ।
पाँव बस रूके नहीं, चले चलो बढ़े चलो ।