बढ़ाती दूरियां
बढ़ाती दूरियां
प्यार इतना है की तुम्हें कैह भी नहीं पाते
तुम्हारे दिए जाखम सैह भी नहीं पाते
तुम्हारे बगैर रैह भी नहीं पाते
तुम्हारी शिकायत करे भी किसे
तुम्हारे खिलाफ एक लफ्ज सैह भी नहीं पाते
दिल तोड़ा तुमने ही हैं
और प्यार भी तुमसे हैं
न जाने ये कैसी उलझन है
दूर तुम गए और टुट हम गए
ये कैसा प्यार था तुम्हारा
दिखाये सपने तुमने थे
और तोड़ भी तुमने ही दिए
प्यार में इतना हक किसने दिया
एक याद में मरता रहे
दूसरा बेफिकार हो कर रहे?

