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Nidhi Jain

Abstract

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Nidhi Jain

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बचपन की सुनहरी यादें

बचपन की सुनहरी यादें

2 mins
382


रह रह कर याद आती है उलटी सीधी बातें 

ए बचपन कैसे भूलूँ तेरी खट्टी मीठी यादें 


न धूप न बारिश की परवाह मस्ती में रहना 

 ए बचपन कैसे भूलूँ तेरी टप्पे कंचे की यादें 


तू जो मासूम नादान है मन हो जैसे आयत 

ए बचपन कैसे भूलूँ तेरी भोली भाली यादें 


थक जाता हूँ जब दुनियादारी के सफ़र पर 

ए बचपन कैसे भूलूँ तेरी शरारत भरी यादें 


बचपन की यादों में सुनहरी याद 

ए इमली क्या करूँ तेरी बातें 


खाते ही आँखों में खटास लाने वाली यादें 

तेरी खट्टी मीठी यादें तेरे संग होने वाली ढेर सारी यादें 


लड़कपन की कुंवारेपन की 

अलह्हड़पन की अटपटीसी यादें 


तुझे पाने की क़वायदें लाल हरी कच्ची पक्की इमली से 

पेड़ों पे झूलती शाखें चोरी चोरी शाख़ों से तोड़ने पर 

पड़ोसी से डाँट खाने की बातें वो चटनी में चटखारेपन की बातें


वो पानी पूरी की ठेलों पर 

घुलती सी खट्टी मीठी बातें 

वो कचौरी में डलती चटनी सी 

लज्जत वाली बातें 


वो दही बड़ें में सजती स्वाद भरी तेरी खट्टी मीठी बातें 

रसोई में मर्तबान में झाँकती मेरी जासूसी आँखे 


हर पल तुझे खोजती मेरी ललचाई आँखे 

तुझ में छुपे चिये सी मुझ में छुपी मेरी ही बातें 


गरमी की छुट्टी में मेरी साथी बनी तेरी खट्टी मीठी यादें 

एकी की बेकी और अष्ट चंग पे की सारें वो दिन भी आया 


तुझे खाने की मन मे बैमोसम आई यादें 

सासु ननदी लाड़ करे ले बहु इमली खा लें 

वो गोद भराने की खट्टी मीठी यादें 


अब तुझे से दूरी बन सी गई तुझ से दंतपंक्ति में उठती टीसें

अब बेस्वाद से बेरंग से भोजन में याद आती है तेरे संग बीती यादें


वो मेरे जीवन को करती ख़ूबसूरत सी तेरी खट्टी मीठी यादें ।



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