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Vaibhav Dubey

Abstract

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Vaibhav Dubey

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बाऊजी

बाऊजी

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आज जब तुमको गोद

में उठाकर मैंने

लिटाया बिस्तर पे

तो बचपन का वो वक़्त

याद आ गया।

जब अपने काँधे पे 

बिठाकर तुम मुझे मेला 

घुमाया करते थे।


भीड़ से लड़ते मुझे बचाते हुए

कभी लड़खड़ाते थे कदम

तो मुझसे पूछते..

तुम ठीक हो न ?


तुम्हारे कांपते हाथों में जैसे 

ही आता है मेरा हाथ।

एक स्थिरता आ जाती है।

क्योंकि तुम्हे विश्वास है

अपने रक्त पर।


और मुझे भी भरोसा है

तुम्हारे दिए संस्कारों पर।

भले ही कम सुन पाते हो

तुम मेरी आवाज़

मगर मेरी निरन्तर चेष्टा दे देगी

जबाब तुम्हारे सवालों के।


तुम्हारे चश्में का नम्बर

बढ़ते-बढ़ते थक गया।

मगर मैं नहीं थकूँगा

दिखाऊंगा सारी दुनिया

अपनी आँखों से।


तुम्हारे पुरुष हृदय में भी 

कहीं माँ की ममता छिपी है।

बस प्रभु से यही प्रार्थना है कि

जीवन की अन्तिम साँस भी

तुम्हें समर्पित हो जाये, बाऊजी।


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