बारिश
बारिश
बारिश हो रही है लगतार,
जैसे धुल रही हो इंसान के पाप की कतार |
हर बार बारिश यूँ ना आएगी,
गरम देशो में यूँ राहत की खुशियाँ ना लाएगी |
वक़्त रहते सुधर जा ए इंसान,
नहीं तो यही बारिश प्रलय लाएगी |
जिस तरह तू कुदरत के नियमों से खेल रहा है,
उसी तरह ये बारिश तुम्हे भी अपना विनाशकारी खेल दिखाएगी |
जिस तरह तू उसकी सुदरता और स्थिरता को बर्बाद कर रहा है,
उसी तरह ये बारिश सम्पूर्ण संसार को रुलायेगी |
बारिश ने जो दिया है तुम्हे वरदान,
उसका तुम करो सम्मान |
नष्ट हो जाये बारिश की सुंदरता,
कुदरत के साथ ऐसा ना कोई काम करो |