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Aarti Garval

Inspirational Others

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Aarti Garval

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बाल विवाह: एक अनकही त्रासदी

बाल विवाह: एक अनकही त्रासदी

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छोटी सी गुड़िया, खिलौनों से खेलती,

सपनों में रंग भरने को उत्सुक रहती।

अभी तो उसने पढ़ना सीखा,

कहाँ समझेगी ब्याह का लेखा?


माँ की गोद से बिछड़ रही है,

डोली में बैठी सिसक रही है।

जिस आंगन में थी किलकारियाँ,

वहाँ रह गईं बस यादें सारीयाँ।


सपनों को तोड़ा, उम्र को बाँधा,

रिश्तों ने बचपन का हक भी छीन डाला।

खेलने-कूदने के दिन जो थे,

अब चूल्हे-चौके में बीतेंगे।


अधूरी पढ़ाई, अधूरे सपने,

रूढ़ियों ने रच दिए अपने क़ैदखाने।

मासूमियत की चीखें दब गईं,

एक नई दुनिया में खो गईं।


कब तक चलेगा यह अन्याय?

कब मिटेगा यह बाल विवाह?

उठो, बदलो यह रस्म पुरानी,

लौटाओ बचपन की वह कहानी।



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