अंतर्मन
अंतर्मन
प्रिय डायरी,
एक दिन खुद से पूछा-
कभी अपने को जाना है।
मैं सकपका कर बोली-
क्या जानना है।
मेरा अन्तर्मन बोला-
कभी फुर्सत में खुद को खोजना।
मैंने बात मान ली और
स्वयं को खोजने लगी
तो पाया मैं वह नहीं
जो मैं दिख रही हूँ।
मैं वो हूँ जिसमें मेरा
अंतर्मन मुझे स्वीकारे।