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Deepti Shukla

Abstract

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Deepti Shukla

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अंतर्द्वंद

अंतर्द्वंद

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जिंदगी एक भवर है

जिसमे इन्सा कभी इधर तो कभी उधर है


इधर तो हिमालय सी सरफ़रोशी छायी है

उधर जिंदगी खारे समुद्र सी खाई है



इधर ज्वालामुखी सी प्यार की तपन है।

उधर जिंदगी में नित नए भूकंप है


इधर उसके प्यार का मरुधान है

उधर जिंदगी तपता रेगिस्तान है।


इधर तो परिवार का विशाल सौरमंडल है

उधर दूर इंतज़ार करता एक गगन है।



इधर जिंदगी आग का गोला है

उधर ठंडी हवा पे मन डोला है।


इधर दिल उदास है

उधर मुहब्बत की आस है।


इधर जिंदगी नयी उड़ान मार रही है

उधर मौत पंख पसार रही है।


इधर मौत है मेरी

तो उधर जान की आस है।


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