मन की बेड़िया
मन की बेड़िया
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तू खोल मन की बेड़िया
सतभाव से कर मन पवित्र
तू शंकित ना हो कदाचित्
तन को कर श्रम के निमित्त।
तू छल-कपट को छोड़कर
सज्ञान से कर पथ प्रशस्त
तू लोभ मोह को त्यागकर
चल सर्व प्रेम की राह पर।
तू बंद करके सब अंतर्द्वंद,
विषमताएं कर खंड-खंड
तू हो प्रबल खड़ा डटकर
चल अब ना प्रलाप कर।
तू दूरकर मन के तिमिर
भ्रम से स्वयं को विमुख कर
तू चीर बाधाओं के द्वार
सम्भावनाएँ हैं अपार।
तू सर्वगुण से हो आभूषित
लक्ष्य अपने कर ले निर्धारित
तू हो कर प्रसन्नचित,
आशाओ का भंडार भर।
तू एक शक्ति पुंज बन
तू स्वयंभू बन
हाँ तू स्वयंभू बन
करना है तूने ही सर्वहित।