अंतिम संतान
अंतिम संतान
मैं चिरंजीवी अश्वस्थामा,
गुरु द्रोणाचार्य का सूत,
कोई कहे देवदूत,
तो कोई कहे भूत
मैं कल भी अकेला था,
मैं आज भी अकेला हूँ,
मैं तिल-तिल तड्पता हूँ,
मैं दिन रात भटकता हूँ
घने पहाडी जंगलो में,
रात के गहेरे अंधेरो मे,
मृत्यू कि आस में,
किसी शव कि तलाश मे
मैं कौरवो की शान हूँ,
द्वापर युग की पहचान हूँ
कभी ना तुटने वाला,
मैं वो आखरी बाण हूँ
आज भी मेरे माथे पर,
दिव्य मनी का घाव है,
बहेता हुवा खून नही.
ये मेरे पापो का बहाव है,
मैं बेबस हूँ , बेसहारा हूँ,
मैं थका हूँ, मैं भुका हूँ,
मैं क्रोधी हूँ, अपराधी हूँ,
मैं रोता हूँ, चिल्लाता हूँ
मैं बनवासी हूँ, संन्यासी हूँ,
मैं त्यागी हूँ, बैरागी हूँ,
मैं नंदलालसे शापित हूँ,
अमर होके भी अपमाणित हूँ
मैं दिव्यशक्ती का साधक हूँ,
मैं व्याधीयों का बाधक हूँ,
मैं ब्रम्हास्त्र का धारक हूँ,
मैं भ्रूण का मारक हूँ
कभी ना मिटने वाला,
मैं महाभारत का निशान हूँ,
मैं कलियुग की आखरी,
और अंतिम संतान हूँँ।
