अंत किसका
अंत किसका
मुख फैलाए काल खड़ा हर द्वारे द्वारे
सूक्ष्म शत्रु से अनगिनतों ने जीवन हारे
पश्चिम में लाशों के अंबार लगे है
मरघट में मृत शैय्या पर अंगार सजे हैं
ह्रदय द्रवित है आँखें पथराई जाती हैं
मन मस्तिष्क भ्रमित है कुछ न समझ पाती है
विश्व शक्तियाँ हो रही जीवन से वंचित हैं
अब भी ना समझे तो अंत सुनिश्चित है
करो पृथक खुद को ना विचारों चारों ओर
अपने ही हाथों में है नीचे जीवन डोर
बड़ा सरल है अब तो दिखलाना पुरुषार्थ
राष्ट्र प्रेम को जीवन में कर लो चरितार्थ
ना समझे तो यह देश जंग में जाएगा हार
जो समझ गए तो राष्ट्र कुचक्र से पाएगा पार
मानव अभी लोभ पाप से संचित है
अभी ना समझे तो अंत सुनिश्चित है
समय कठिन है यह भी एक दिन कट जाएगा
ख़ुशियों की सौगात लिए नूतन सूरज आएगा
आरोग्य वीर जूझ रहे विकराल काल से
वो खींच रहे एक एक जीवन को यम के गाल से
यह धरा कर्मवीरों से सज्जित है
अभी ना समझे तो अंत सुनिश्चित है