STORYMIRROR

Anita Jena

Abstract Children

3  

Anita Jena

Abstract Children

अनमोल बचपन

अनमोल बचपन

1 min
244

वो बचपन ही क्या 

  जो पचपन में याद ना आए, 

वो खिलती हुई मुस्कान जो

   हर किसी के गुस्सा को मिटा दे। 


आज अगर मिल जाए एक मौका

  तो मांग लेंगे खुदा से, 

फिर से एक बार मिला दे मुझे 

   मेरे अनमोल बचपन से। 


ना था दिल में गुस्सा 

   ना थी कुछ पाने की जिद, 

सब कुछ मिल जाता था

   सारी अनमोल चीजें। 


दिन गुजरता गया 

    खो दिया मैंने बचपन , 

ज़िन्दगी की राह पे चलते चलते 

     आ गया पचपन। 


तब पास कुछ नहीं था लेकिन

    था अपनों का प्यार, 

अब सब कुछ है पर  

       ना है सुकून यार।  


कहते है सब अकसर 

   बच्चों में करते है हम गलती, 

अब तो वक़्त गुज़र जाते है 

  पर खुद को ना मिलती माफी। 


वो बचपन की यादें 

    वो मम्मी पापा का लाड, 

तरस जाते हैं आज 

    पर आता नहीं वो एहसास। 


भूलने चाहूं तो याद और आता है

  वो बचपन ही चीज ऐसे है ,

ये पचपन में अपने बच्चों को 

  अपना बचपन सुनाने में भी मजा कुछ और है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract