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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Inspirational Others

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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अंकुर- वृक्ष - अंकुर

अंकुर- वृक्ष - अंकुर

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एक नन्हा सा अंकुर 

निपट अकेला खड़ा है 

बियाबान जंगल के बीच

जहां सुनसान रातें डराती हैं 

आंधी तूफान चिक्कारते हैं 

जंगली जानवरों का खौफ है 

मगर धरती मां का प्यार है 

नीलाम्बर की घनी छांव है 

घनघोर घटाओं का अमृत है

सूर्य की ओजस्वी किरणें हैं 

जीवन दायिनी वायु का आंचल है 

टिमटिमाते तारों की चादर है 

मखमली घास का बिछौना है 

लताओं की अठखेलियां हैं 

ऐसी विषम परिस्थितियों में 

प्रकृति पाठ पढ़ाती है कि

सदैव संघर्षरत रहो, कर्म करते रहो 

एक न एक दिन वृक्ष बनना है 

वृक्ष बनकर छाया, फल फूल से 

जीव मात्र का कल्याण करना है 

कुछ लोग तुम्हें काट भी सकते हैं 

केवल ठूंठ बनाकर छोड़ सकते हैं 

मगर तुम्हें उत्तेजित नहीं होना है 

उस ठूंठ में से भी फिर से कोई 

एक और नन्हा सा अंकुर निकलेगा 

और फिर से वह अंकुर वृक्ष बनेगा 

यही जीवन का नियम है 

यही सभी शास्त्रों का सार है 



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