अनजान मोहब्बत: 2दिलों कि कहानी
अनजान मोहब्बत: 2दिलों कि कहानी


राहुल
उसे देख पहली नजर
मुझे कुछ हो सा गया था।
मैं बढ़ता उसकी ओर
पर उससे पहले
मैं कुछ ठहर सा गया था।
वह खूबसूरत थी या
मेरी शिकायत...
अनजान बन कर
मेरा रूख़ उसकी ओर
मुड़ सा गया था ।
शालिनी
फिर जब उसने मुस्कुराकर
देखा मेरी तरफ़..
मेरी नजरें झुकी जब वह
बड़ा मेरी तरफ़..
वह ग़ैर ही तो था।
तो उससे क्या शरमाना
पर दिल की धड़कन बड़ी
जब वह बड़ा मेरी तरफ़..
राहुल
मेरी नजदीकी बड़ी
उसका नाम पुछने को..
वह मुझसे दूर हुई क्योंकि
मैं हूं अनजान सोचने को..
मुझे फर्क ना पड़ा क्योंकि
मुलाकात यह पहली थी।
तो क्या हुआ अगर
दिल नहीं मिला उस अनजान से
मैंने तो पहले ही
दिल को मना लिया था।
कि अभी समय नहीं हुआ
तेरा टूटने को
शालिनी
दरअसल हुआ यह था
कि सांसें थम सी गयी थी।
मुझे कुछ कहना था
पर मैं रुक सी गयी थी।
क्योंकि महसूस मुझे यह हुआ कि
यह हवाएं क्यू चल रही है..
उस भीड़ में,
मैं उस अनजान के
बारे में सोच रहीं थीं।
राहु
ल
वह बड़ी अनजानी शयानी थी।
मुस्कान बच्चों वाली
तो शरारतों मे नादानी थी।
पढ़ना तो सीख लिया था मैंने
इसलिए उसकी ख़ामोशी में
हर बात नज़र आती थी।
कहें ना कहें वह कुछ
पर आंखें सब कह जाती थी।
शालिनी
समझ पाना मुझे
बस की बात नहीं कहता था।
मैं तो जानती थी सब
बस वही डरता था।
क्योंकि मुस्कान के पीछे का दर्द
ओर दर्द के पीछे का कारण
सब मुझे पता चलता था।
सोच में डूबना उसका बड़ा गहरा था।
आंखें उसकी भी कहती थी।
कि मासुम उसका कितना चेहरा था।
राहुल
जुल्फें वह ऐसे लहराती थी
कोयल जैसा मीठा गाती थी।
बातें सबसे करती
पर मुझसे इतराती थी।
ना जाने कैसी
यह हमारी कहानी थी।
कभी ना हो पाया यह
"अनजान मोहब्बत" साथ
पर वह मिलने
मुझसे ही आती थी।
शालिनी
क्योंकि जानती थी वह कि
फ़िक्र करता था उसकी
ना जताती कभी पर
चिंता मुझे भी थी उसकी
यह प्यार का एहसास था।
जो दिया तो कभी नहीं
क्योंकि यह "अनजान मोहब्बत" थी।
इसलिए बताया नहीं
पर दिल में कहीं ना कहीं
जगह थी उसकी।