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Haryax Pathak

Abstract

5.0  

Haryax Pathak

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अक्षरों का खेल

अक्षरों का खेल

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कलम ने की कवि से एक गुज़ारिश,

ख्वाबों की कर तू ऐसी सिफारिश,

गुनगुनाए कलाई तेरी, लकीर तू खींच,

घमासान एक ऐसा भी, कागज़ ओर कलम के बीच।


कवि कहे,

चंचल ये असीम ख्वाब मेरे,

छल से अंगड़ाई बदले, साँच से परे,

जज़्बाती ये आकांक्षाऐ मेरी,

झपकती पलक में करवट बदले, ले इम्तिहान मेरा।


टस से मस ना हुई ये कलम, स्याही मुरझाए,

ठहर जा ओ शायर, किस ओर चलता जाए ?

डंक ना मारे वो साँप ज़हर कैसे बहाए,

ढाक ले अपना चेहरा जो, कवि ना तू कहलाए।


तशरीफ़ रखिये जनाब, कवि बोल उठे,

थम जायेंगी साँसें, उछल पडेंगे रोंगटे,

दास्तान हम लिखेंगे, ऐसी होगी बात,

धूप हो या छाँव, दिन हो या रात,

नायाब होगा ये तोहफा रंगीन।


परेशानी को कहे अलविदा, ना आप रहे गमगीन

फरिश्तों से ये है हमारी पुकार,

बरसाए आशीर्वाद, करते हैं इज़हार,

भाषाएं तो भिन्न भिन्न हैं,

मधुर मीठी पंक्तियों को करना उत्पन्न है।


यादों में बसी कई सारी बातें हैं,

रिश्तों मे छुपी हुई नज़ाकतें हैं,

लफ़्ज़ों मे कैसे करे उन्हें बयान,

व्याकुल हैं हम, हमे दे कोई वरदान।


शतरंज का खेल कलम को आए,

षड्यंत्र का ऐसा रंग लाए,

स्याही शर्माए, खिलखिलाए,

हँसते हुए वो श्वेत कागज़ पर बहती जाए।


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