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DEVSHREE PAREEK

Abstract

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DEVSHREE PAREEK

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अक्सर...

अक्सर...

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यूँ इस कदर अपना किसी को, मानना अच्छा नहीं

लोग अक्सर दिया हुआ, वापस छीन लिया करते हैं…

नेक दिल होकर किसी को, अपनी चाहतें ना देना तुम

लोग अक्सर हर किए का, हिसाब रखा करते हैं…

बेशक मोहब्बत कर, मगर यह सोच लेना गौर से

जान देनेवाले ही अक्सर, जान ले लिया करते हैं…

बेपनाह मोहब्बत का सागर, क्यों लुटाकर आए तुम

लोग अक्सर दरिया के, कतरे तक को गिना करते हैं…

इन बेखौफ आँधियों ने, आज यह बात है सिखलाई

लोग अक्सर आग को, जानकर हवा दिया करते हैं.


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