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Swastika Jain

Inspirational

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Swastika Jain

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अकेला

अकेला

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अपनी प्रगल्भ त्वरा पर इतना अभिमान था

मृग मरीचिका संतप्त करना बस यही अरमान था

 पा लिया जो जीवन की उत्कट अभिलाषा थी

 तृप्त ना हो ऐसी तृष्णा मेरे मन में अभिराजित थी

 खोज रहा शायद उसे प्रारब्ध के बल पर पा सकूं

 कर्म तो कर के देख लिया अब नियति को भी जाँच सकूं

 सब कुछ पाकर भी शून्य बना मैं क्यूँ हूं ?

 हाशिये पर खड़ा मैं अकेला आज अकेला क्यूँ हूं ???


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