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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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अकेला चलता जाता हु

अकेला चलता जाता हु

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जीवन की पगडंडी पकड़

मैं चलता जाता हूं।

राह में मिले जो लोगों

का प्यार

कट जाते जीवन के दिन

ये दो चार।

रुकना नहीं

थकना नहीं

रिश्तों के यहां

जीव जंजाल है।

हमें रिश्तों में नहीं बांधना है ।

केवल आगे बढ़ना है।

जब तक वह मिल जाता नहीं।

दिल जो बोले वही करें

और समझ कुछ आता नहीं ।

अपनी मस्ती

अपनी धुन है ।

है अपनी डफ़ली

है अपना राग ।

मैं गीत खुशी के गाता हूं।

मैं अकेला चला जाता हूं।

उस परब्रह्म की ओर

छोड़ जीवन की शोर।

मैं चला जता हूं ।

मैं गीत खुशी के गाता हूं।

मैं गीत खुशी के गाता हूं।

जीवन की पगडंडी पकड़

मैं अकेला चलता जाता हूं।

मैं अकेला चलता जाता हूं


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