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javed khan

Romance

3  

javed khan

Romance

अजनबी

अजनबी

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तू तो हमकदम था,तू कब साया बन गया...

मेने कब अजनबी कहा,तू क्यो पराया बन गया...


तू खामोशी से सुनता था हर बात ऐ चिल्लाने वाले शख्स.... 

तेरी जुबां से तो शहद टपकता था तेरा कैसा जाय़का बन गया....


एक वक़्त तेरी पलकों पर कयाम किया हमने अब तू नज़रे चुराने लगा है.....

मुझे तुझमें अब तू नज़र नही आता तू आख़िर किसका आईना बन गया....


है तुझ पर एक उधार मेरा वो ये के मेने ना चाहते हुए भी तुझे इश्क अता किया.....

फिर भी छोड गया हाथ मेरा एक बहते दरिया में हाय! तुझसे ये कैसा फासला बन गया .....



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