ऐसी है मेरी कलम
ऐसी है मेरी कलम
ऐसी है मेरी कलम
कागज़ से करती प्रेम
चूम कर उसको,
करती है आलिंगन
भिगो देती है फिर
ह्रदय से निकली स्याही से
और बन जाती है कविता
ऐसी है मेरी कलम
लगाकर दुनिया की ऐनक
बढ़ाती शब्दों पर रौनक
देखकर दर्द पराया भी
अपने अल्फाज़ो से
निचोड़ती है पीड़ा
और बन जाती है कविता
ऐसी है मेरी कलम
चुनावों के दौर में
गली मोहल्ले शोर में
सुनकर नेताओं के वादे
भांप जाती है सब इरादे
नारों और जुमलों की
भाषा में खो जाती है
और फिर कोई कविता
हो जाती है
ऐसी है मेरी कलम
तोता मैना की प्रेम कहानी
जिम्मेदारी तले जवानी
बुढ़ापा जब खाता है ठोकर
चलती है कलम जब रो कर
कलम से बड़ा हथियार नहीं
पर ये कोई बाजार नहीं
सब देख कविता बन जाती है
ऐसी है मेरी कलम
ख़ुशियों की झंकार सजाती
गीत विरह के भी ये गाती
दूर पिया को दे संदेशा
अपनों को अपनी याद दिलाती
थक हारकर सो जाती है
कोई कविता बन जाती है
ऐसी है मेरी कलम
मैं भी अगर कलम बन जाऊं
कलम के क्या क्या रूप दिखाऊँ
पुष्प बन भक्ति रस लिखती
शहीदों को नमन सलामी देती
बच्चों की किलकारी बनती
दुल्हन बन डोली में सजती
घुंघरू कोठे का मन बहलाती
चीत्कार से अखबार सजाती
वृद्धाश्रम की लिखती पीड़ा
सुधार का उठाती बीड़ा।
जब कुछ नहीं कर पाती तो
एक कविता बन जाती है
ऐसी है मेरी कलम