ऐसे लाल बहादुर थे
ऐसे लाल बहादुर थे


कांटो में खिले हुए तुम फूल सी बहार थे ।
पहचान सके न तुमको ऐसे लाल बहादुर थे ।।
ताशकंद के बने पुजारी भारत लौटके न आए,
क्या संदेश दिया ? मुंह से कुछ कह न पाए ।
चमन में आई हुई तुम अनुपम बहार थे ।
पहचान सके न तुमको ऐसे लाल बहादुर थे।।
जय जवान ,जय किसान यही तुम्हारा नारा था ,
सर्वस्व समर्पण भारत को ये आधार तुम्हारा था।
जलती हुई आग में तुम शीतल अंगार थे।
पहचान सके न तुमको ऐसे लाल बहादुर थे।।
तप - तप कर कंचन में निखार आता है ,
कष्टों में पलकर ही नर वीर कहलाता है।
तपे हुए कंचन की तुम अनूठी निखार थे।
पहचान सके न तुमको ऐसे लाल बहादुर थे।
अठारह महीनों में ही सबके मन पर छा गए ,
जीवन की पूर्णताअठारह मास में दिखला गए।
माँ भारती के तुमअपूर्व स्फुरित कंठहार थे ,
पहचान सके न तुमको ऐसे लाल बहादुर थे।।