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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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अहिंसा

अहिंसा

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जब बात अहिंसा की आती है

तो बापू की छवि सामने आ जाती है,

बापू की दुहाई दी जाती है

बेसुरे राग में बापू के सिद्धांतों की 

कथा सुनाई जाती है,

अपने हिंसात्मक प्रवृत्ति पर

गांधी चादर ओढ़ाई जाती है।


अच्छा है कि बापू का नाम लीजिए

उनका सम्मान, उनके विचारों को मान दीजिए।

पर पहले अपनी हिंसात्मक प्रवृत्ति को

सिरे से लगाम तो लगा लीजिए।


अहिंसा की बातें करने, 

बापू की आड़ में अहिंसा को बदनाम करने से

सुबह से शाम तक हिंसा को बढ़ावा देने

हिंसा पर हिंसा करते हुए

अहिंसा के लंबरदार बनने से

अहिंसा का प्रचार नहीं होता,

ऐसी ही अहिंसा का शिकार आज

जाने कितना बेगुनाह बनता


अहिंसा की भेंट चढ़कर 

बापू की अहिंसा नीति प्रचार करता,

हिंसा की पृष्ठभूमि में भी

बापू का ही नाम रटता

क्योंकि आज तो बस

अहिंसा का 'अ' छोड़कर गुणगान करता,

केवल हिंसा हिंसा का जाप करता,

बस अहिंसा का खोखला दंभ भरता

खुद को सबसे बड़ा गाँधीवादी बनता। 


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