अगर तुम नहीं होते तो
अगर तुम नहीं होते तो
हमें कुछ अच्छा नहीं लगता।
ये चमकते तारे।
जब नींद खुलती थी, चली जाती थी छत पर सुबह सुबह।
वो भी अच्छा नहीं लगता सुबह बेला के नजारे।
ये झूलते सावन के झूले आम के डाली पर।
उलझी लताएं प्रेम के डाली पर।
जब जब देखती खिड़की से पर्दा हटा कर।
चमकती चांदनी जैसे बुला रही हो हमें मोतियों के शय्या पर।
अधूरी रहती नींद मेरी जो रातों को लोरी सुनाती है।
उड़ जाते चेहरा से चमक तुम्हारी याद में।
भटकना पड़ता आवारा के गलियों में आवारा बनकर।
नहीं फिर लौट कर आती चाहें तू कुछ भी कर लेता फ़रियाद में।
नहीं रह पाती आहिस्ता सांस लेकर तेरे बिना।
हम कैसे जीती तेरे बांहों में पलके बिछा कर।
सब कुछ भूल जाती पूरी जिंदगी के लिए।
अगर तुम नहीं अपनाते इस हालत में,
हम कुछ भी कर जाती जिंदा रह कर।
कैसे गुजारती जीवन सारा इसी मोड़ पर।
मिलता आंसू के कण भी जी लेती पी कर।
अगर तुम नहीं होते तो मिट जाती भूख मेरी।
कैसे कहूं ये बाते जीना है मुश्किल तुमसे दूर रह कर।