अधूरी मोहब्बत
अधूरी मोहब्बत
यूँ करके बेचैन रातें हमारी,
उड़ाके इन आँखों की नींदें जो सारी।
जा छोड़ा है ऐसे इस दिल को धड़कते,
की पानी तो है फिर भी प्यासे तरसते।
इस क़ातिल हुनर से जो तुमको नवाज़ा,
ना सोचा क्या मेरा बस इतना ज़रा सा।
मोहब्बत हुई है यह एहसास जबसे,
इम्तिहानों की महफ़िल लगा दी है तबसे।
यह दूरी, यह बिछड़न, यह दिल के जो क़तरे,
पराई यह दुनिया और अपनों से ख़तरे।
सब हँसके सहा है ना इसका कोई ग़म,
के बदले इसी के अगर मिलो तुम किसी जनम।